कुंडली दोष से अभिप्राय जन्म कुंडली में ग्रहों का अशुभ स्थानों व प्रभावों में होना है। जब भी कोई ग्रह राहु, केतु, शनि और मंगल जैसे पाप ग्रहों के प्रभाव में होता है तो हमारी कुंडली में दोष का निर्माण होता है। ग्रहों के खराब या त्रिक भाव में होने से भी कुंडली दोष बनता है। हालाँकि, कुंडली दोष, ग्रह के केंद्र या त्रिकोण भाव में होने पर भी बन सकता है , वैसे तो कुंडली में कई प्रकार के दोष होते हैं पर कुछ मुख्य दोष है जिनकी नीचे चर्चा की गई है -
कालसर्प दोष –
राहु और केतु का एक दुसरे के सामने होना एवं बाकि ग्रहों का एक तरफ होने से कुंडली में काल सर्प दोष बनता है। इस दोष की वजह से जातक को जीवनकाल में कई सारे दुखों एवं असफलताओं का सामना करना पड़ता है। कालसर्प दोष से ग्रसित जातक को शिवजी की उपासना नियमित रूप से करनी चाहिए।
विष दोष –
कुंडली में अगर शनि एवं चन्द्रमा एक साथ एक घर में विराजमान हों तो इससे विष दोष बनता है। विष दोष का प्रभाव भी अशांति एवं असफलताओं को उत्पन्न करता है।
गुरु चांडाल दोष –
अगर किसी कुंडली में गुरु राहु के साथ आ जाये तो इससे गुरु चांडाल दोष बनता है। ऐसा जातक इस दोष के प्रभाव के कारण काफी तकलीफ से भरा जीवन जीता है। इस दोष के प्रभाव को कम करने का सबसे बेहतर उपाय है की राहु के मंतोच्चारण कर एकाग्रता से ध्यान करें वो भी गुरुवार के दिन। ऐसा करने से आपकी ज़िन्दगी में शांति आएगी और आप बेहतर महसूस करेंगे।
पितृ दोष -
जातक जिनकी कुंडली के नौवें भाव/घर में शुक्र, बुध अथवा राहु बैठे हों तो ये दशा पितृ दोष पैदा करती है। इसके साथ साथ यदि दशम भाव/घर में बृहस्पति विराजमान हों तो भी पितृ दोष बनता है। यही नहीं, कुंडली में यदि सूर्य के ऊपर राहु/केतु एवं शनि की यदि दृष्टि आये तो इससे जातक पे पितृ ऋण की दशा बनती है।
मंगल दोष -
मंगल दोष के बारे में आपने सुना तो है, लेकिन क्या आप जानते हैं की कैसे लगता है मंगल दोष। अगर आपकी कुंडली में मंगल ग्रह कुंडली के 4, 7, 8 एवं 12 भाव/घर में हो तो ये स्थिति मंगल दोष की बनती है। मंगल दोष को ही मांगलिक दोष कहा जाता है। मंगल दोष वाले जातक को हमेशा मंगल दोष वाले पुरुष/स्त्री से ही विवाह करना चाहिए। यदि इस दोष को अनदेखा करके विवाह कर लिया जाए तो वैवाहिक दंपत्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
केमद्रुम दोष
केमद्रुम दोष तब बनता है जब चंद्रमा के दोनों ओर कोई ग्रह न हो। ज्योतिष में चंद्रमा मन, वित्त और माता का कारक है। यह योग व्यक्ति को कमजोर बनाता है और उसके जीवन में सुविधाओं, धन और संबंधों का अभाव होता है। यह अत्यंत नकारात्मक दोष है।
केन्द्राधिपति दोष-
केन्द्राधिपति दोष में केंद्र भाव पहला, चौथा, सातवां, और दसवां भाव होता है। मिथुन और कन्या लग्न की कुंडली में यदि बृहस्पति पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में हो, धनु और मीन लग्न की कुंडली में बुध पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में हो तो केन्द्राधिपति दोष का निर्माण होता है। दरअसल, बृहस्पति, बुध, शुक्र, और चंद्रमा के कारण यह दोष बनता है।
कुंडली दोष क्यों बनता है?
हिंदू दर्शन कर्म सिद्धांत में विश्वास करता है और यह सर्वसम्मत है कि हमें अपने पिछले कर्मों के कारण ही इस जीवन में भाग्य या दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। यदि हमने कोई पाप किया है या कुछ अस्वीकार्य किया है, तो हमें इस वर्तमान जीवन में कुंडली दोष के रूप में ऐसे उनका परिणाम भुगतना पड़ता है। कुंडली दोष ही जीवन के किसी भी महत्वपूर्ण क्षेत्र को प्रभावित कर हमें हमारे बुरे कृत्यों का फल देते हैं। उदाहरण के लिए यदि आपने पिछले जन्म में अपनी माँ के साथ बुरा व्यवहार किया है, तो आपको उसी का परिणाम चंद्रमा के पीड़ित होने से बने विष योग के रूप में मिल सकता है। चन्द्रमा माँ का कारक है। अब, आपकी जन्म कुंडली में विष योग की उपस्थिति के कारण आप लगातार परेशान रहते हैं और अपनी माँ से कोई सुख प्राप्त नहीं कर पाते। यह अंततः आपकी मानसिक शांति और आपकी मां के साथ संबंधों को प्रभावित करता है। इसी तरह, कुंडली में मांगलिक दोष आपके वैवाहिक जीवन के आनंद को नष्ट कर देता है। इस प्रकार, हमारे पिछले कर्मों के कारण कुंडली दोष बनते हैं और हमें इस वर्तमान जीवन में अपने कर्मों का भुगतान करना पड़ता है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति अपने स्वयं के कर्मों के कारण दयनीय स्थिति में है और यह जानना आवश्यक है कि आपके पिछले कर्मों में से किस कर्म ने इस वर्तमान जीवन में परेशानी पैदा की है। केवल एक आध्यात्मिकता से जुड़ा ज्योतिषी ही ऐसी सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम होता है। वह आपके ग्रहों की स्थिति के माध्यम से गहराई तक जाकर उसमे छिपे हुए अर्थ को बाहर ला सकता है। यदि हम अपने कर्मों को नहीं बदलते, तो हम कितने भी उपाय कर लें, हमें राहत नहीं मिलेगी। सबसे पहले, कुछ दोषों के मूल कारण को समझना और फिर उसके बुरे प्रभावों को कम करने के लिए कर्म करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए व्यक्ति गुरु चांडाल योग के साथ पैदा होता है। हो सकता है कि आपकी कुंडली में यह दोष इसलिए आया हो क्योंकि आपने पिछले जन्म में अपने शिक्षकों या गुरुओं को चोट पहुँचाई या उनका अपमान किया हो। अब गुरु चांडाल योग का प्रभाव यह है कि व्यक्ति गुरुओं का आदर करने से इंकार कर देता है और धर्म विरोधी व्यक्ति होता है। यह गुरु चांडाल योग का सामान्य प्रभाव है। अब, जब व्यक्ति किसी ज्योतिषी से मिलता है तो दो चीजें होंगी। या तो ज्योतिषी ढोंग कर रहा होगा या फिर वह ऐसे योग के कारण और परिणाम आपको समझाएगा। व्यक्ति को तुरंत शिक्षकों का सम्मान करना शुरू कर देना चाहिए और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर देना चाहिए। इस प्रकार के कर्म सुधार से गुरु चांडाल योग का प्रभाव कम हो जाता है और व्यक्ति अशुभ फल से मुक्त हो जाता है। विवाह के लिए कुंडली दोष को उसी तरह से पता लगाया और ठीक किया जा सकता है। और इसके अलावा ग्रहो का दान, रत्न धारण करना, यंत्रों की पूजा करना, मंत्रों का जाप करना या रुद्राक्ष धारण करना आदि करते रहना चाहिए।